मेरा मन!

ये जो मेरा मन है,

क्या चाहता है पता नहीं।

कभी कहता है खुद पर भरोसा रख,

कभी कहता है टूट कर बिखर।

कभी कहता है बन जा नादान,

कभी कहता है समझदार बन।

झोंक दे खुद को, मौके बार बार ना आएँगे।

डर मत, रास्ते नए खुल जाएंगे।।

खुल कर मज़े ले ज़िन्दगी के, हर पल को जी ले।

ज़िन्दगी कोई मज़ाक नहीं, ये कड़वा घूँट भी तू पी ले।।

घबरा ये काली अँधेरी रात से।

मुस्कुरा एक नए पहर के एहसास से।।

ये जो मेरा मन है,

क्या चाहता है पता नहीं।

37 thoughts on “मेरा मन!

  1. ye apka man, kya chahta pata nhi ………………but hmara man chahta hai ki aap likhti rahe 😉
    beautiful piece of writing …keep writing and keep smiling 🙂

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